यह स्तंभ #TPEHP2020 मतलब TURNING PHASE OF ELECTRO HOMEOPATHY के लिए लिखा गया है। और Beyond The Third Eye https://www.facebook.com/BeyondTheThirdEye/ से साभार लिया गया है।
भोजन ही हमारी औषधि है। - हिपोक्रेट्स
मैं यह इसलिए नहीं करना चाहता हूँ कि मैं हिपोक्रेट्स को कमतर आँकना चाहता हूँ, बल्कि इसलिए क्योंकि हमारे पास धरोहर के रूप में भारत के प्राचीन ऋषियों, जैसे- सुश्रुत, चरक, वाग्भट्ट और च्यवन जैसे कई अन्य लोगों द्वारा लिखे गए संहिता के रूप में लिखे गए भारतीय चिकित्सा एवं औषधि पर कई किताबें हैं जो समय-समय पर कई विशेषज्ञों द्वारा स्वीकृत भी की गयी है।
आज के औषधीय विज्ञान के युग में हम हमेशा पाएंगे कि यदि किसी रोगी का जब इलाज किया जाता है तो वो पुनः और विस्तृत रूप में वापस आ जाता है।
हमने कभी ये नहीं सोचा कि ये बीमारियाँ मरीज के इलाज के बावजूद अन्य कई बीमारियों के साथ क्यों वापस आ जाते हैं ?
हमने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया कि मरीज को क्या खिलाना है? बल्कि हमने हमेशा यह माना कि रोगी ने अपनी सारी ऊर्जा खत्म कर दी है और उसे पुनः अच्छे खाने की जरूरत है जिससे उसमें ऊर्जा वापस आ सके, मगर हम कभी ये बात नहीं करते कि कौन सा खाना उनके स्वास्थ्य के हिसाब से हितकर है कौन-सा नहीं।
यदि हम अपने भारतीय औषधीय विज्ञान के प्राचीन पुस्तकों, जो प्रकृति पर आधारित है न कि अप्राकृतिक रसायनों पर, की तरफ नजर डालेंगे तो पाएंगे कि इनमें कई श्लोक है जो भोजन को हमेशा औषधि बताते है।
स्वास्थ्य में 'स्वयं की या प्राकृतिक अवस्था में स्थापित होना' ही इष्टतम स्वास्थ्य है। एक प्राचीन विद्वान वाग्भट्ट अपने पुस्तक अष्टांग हृदयम में 'दशविध परीक्षा' (दस कारक/घटक) के बारे में लिखते हैं जो किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य की अवस्था का निर्धारण करता है:
॰ शरीर का उत्तक (दूष्य)
॰ निवास स्थान (देश)
॰ शारीरिक शक्ति (बल)
॰ मौसम/समय (काल)
॰ पाचन और चयापचय प्रक्रिया (अग्नि/अनल)
॰आनुवांशिक एवं ध्वन्यात्मक संघटन (प्रकृति)
॰उम्र (वय)
॰ मानसिक शक्ति और स्वभाव (सत्व)
॰ अभ्यस्तता (सत्मय) और
॰ भोजन (आहार)
आज के चिकित्सकीय युग में अधिकतर समय हम सिर्फ बीमारी और उसके इलाज के बारे में बात करते हैं, मगर हम कभी भी ये बात नहीं करते कि हमें कैसा खाना खाने चाहिए? जिससे हम सभी से बीमारी हमेशा दूर रहे, और अंत में हमें कभी भी सही परिणाम नहीं मिलता।
क्योंकि पश्चिमी सभ्यता के अनुसरण और एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली के मिलने से हमने एक नया व्यवसायिक मॉडल डायटीशियन का चालू कर दिया जिसने कभी भी 'दश विधा परीक्षा' में दिये गए बिन्दुओं पर ध्यान नहीं दिया।
ये खाद्य पदार्थों के पोषक तत्वों के बारे में तो बात करते हैं, मगर ये दस कारकों पर आधारित शारीरिक परीक्षण के आधार पर उस खाद्य पदार्थ के बुरे असर के बारे में नहीं बताते।
ये कभी भी किसी दो या दो से अधिक खाद्य पदार्थों के सम्मिश्रण के परिणाम पर भी कुछ नहीं बोलते। जिसके कारण, हम पाएंगे कि उनके द्वारा बताई गयी बहुत सारी भोजन करने की आदतें हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं होती। परिणाम स्वरूप: अन्य बीमारियाँ भी हमारे शरीर में घर करने लगती है और उस भोजन के इस आदत को हम विरुद्ध आहार बोलते हैं।
मगर इसके विपरीत वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली जैसे आयुर्वेद, होमियोपैथी, इलेक्ट्रो-होमियोपैथी या यूनानी ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है।
मैं वाग्भट्ट के द्वारा दिये गए बिन्दुओं पर अधिक बल इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि यदि एक अवलोकन आधारित प्रयोग के रूप में यदि सम्पूर्ण भारत को ले, तब हम पाएंगे जो खाना दक्षिण भारत के लोग खाते हैं यदि वही खाना हिमालय पर रहने वाले के लिए कभी भी सही नहीं होगा। यहाँ तक कि भारतीय रसोई में प्रयोग होने वाला खाद्य तेल भी।
यदि हम ध्यान दें, तो भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न तरह के तेल का प्रयोग विभिन्न कार्यों में किया जाता है। तो हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए कि आखिर जो नारियल तेल भारत के दक्षिणी भागों में प्रयोग किया जाता है उसका प्रयोग उत्तर या मध्य भारत के रसोई में क्यों नहीं होता?
यह सिर्फ इसलिए क्योंकि जगह की प्रकृति, समय और शारीरिक प्रणाली हमें बताती है कि नारियल तेल उत्तर भारत में बालों के लिए ज्यादा सही है मगर यदि हम उसका प्रयोग खाने में करेंगे तो उन्हें कफ़, बुखार, गले के संक्रमण जैसे बीमारियों का सामना ज्यादा करना होगा।
इसी तरह सरसों तेल का प्रयोग दक्षिण के निवासी मालिश इत्यादि में करते हैं, मगर उसका प्रयोग यदि वे रसोई में करें, तो उन्हें पाचन संबन्धित बीमारियों का सामना ज्यादा करना पड़ेगा।
औषधि प्रणाली विज्ञान का एक हिस्सा है। हमें विज्ञान के एक प्रतिनिधि होने के फलस्वरूप किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी काल-खंड में प्राप्त वैज्ञानिक निष्कर्ष की कभी भी अवहेलना भी नहीं करनी चाहिए।
मगर समय के साथ अपने सबसे बढ़िया होने के अहंकार में हमने विज्ञान की अवधारणाओं को ध्वस्त भी किया है।
यदि हम सिर्फ भारत में मौजूद समग्र वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली को ही लें तो हम पाएँगे कि इन सब का स्रोत सिर्फ एक है वो भी 'माता प्रकृति'।
यह औषधीय विज्ञान के इन सभी शाखाओं की बहुत ही अद्वितीय विशेषता है। जब हमारे दवाओं का स्रोत एक है मतलब 'माता प्रकृति' तो हमें खुद से एक सवाल पूछना चाहिए कि एक ही माता के बच्चे होने के बावजूद हमने एक दूसरे की अवहेलना क्यों की?
हमें अपने प्राचीन पुस्तकों, वैकल्पिक चिकित्सा के विभिन्न शाखाओं की पुस्तकों में जा कर यह जरूर देखना चाहिए कि आखिर किस तरह का खाना हमारे लिए सही है?
हमें वाग्भट्ट द्वारा दिये गए दस विधा परीक्षा प्रणाली को भी किसी को भोजन बताने के लिए भी जरूर सीखना चाहिए।
मैं खाने की आदतों के लिए सिर्फ वाग्भट्ट तक ही सीमित नहीं करना चाहता, बल्कि समय के साथ विभिन्न प्रकृतिवादियों के द्वारा किए गए अवलोकनों पर भी ध्यान देना होगा न कि एक डायटीशियन के।
अविनाश कुमार
(मैं कोई डॉक्टर नहीं, बल्कि विज्ञान का एक छात्र हूँ जो हमें हमेशा अवलोकन करना, पढ़ना और साथ में सीखना भी बताता है।)
अध्यक्ष (पाटली अर्बनोक्रेट्स)
एचआर प्रबन्धक (सायको टेक्नॉलॉजी)
ईमेल: avinashkr.ak@gmail.com
बेतिया, बिहार ।

